जब यह तंत्रिकाएं कमज़ोर हो जाती हैं और आँख की मांशपेशियां नियंत्रित नहीं रहती तो वह किसी भी दिशा में घूमती हैं। इसी के कारण भैंगेपन की समस्या पैदा होती है। यह समस्या आम तौर पर एक ही आँख में होती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि दोनों आँखों में नहीं हो सकती। हालाँकि ऐसे मामले कम ही देखने को मिलते हैं, जिनमें कोई व्यक्ति या बच्चा दोनों आँखों के भैंगेपन का शिकार हो।
यह समस्या आम तौर पर, जन्मजात होती है और बच्चे के 6-7 वर्ष की उम्र के होने तक नज़र आती है। वहीँ कुछ व्यक्तियों में यह उम्र के किसी भी पड़ाव में हो सकती है। यदि किसी व्यक्ति की आँख की मांशपेशी कमज़ोर हो जाए, तो वह ठीक से काम नहीं कर पाती और आँखों की पुतली किसी भी दिशा में घूमनी शुरू हो जाती है। इस तरह की समस्या को पैरालीटिक भैंगापन या तिरछापन कहा जाता है।
आँखों की मांशपेशयां या किसी एक आँख की मांशपेशी जितनी अधिक कमज़ोर होती है, मस्तिष्क का उन पर नियंत्रण भी उतना ही कम होता है और आँखों की पुतली भी उतनी ही तेजी से घूमती है। साथ ही इस समस्या में अन्य आंख के मुकाबले उस आंख से दिखाई भी कम देता है। आम तौर पर यह समस्या सिर्फ़ एक ही आँख में होती है, लेकिन ऐसा नहीं है कि यह दोनों आँखों में नहीं हो सकती। हालाँकि ऐसे मामले बेहद कम बल्कि यूं कहें कि न के बराबर देखने को मिलते हैं।
हालाँकि ऐसा माना जाता है कि इस समस्या का उपचार नहीं होता, लेकिन डॉक्टर यह बात भी स्वीकार करते हैं कि यदि समय रहते इसे पहचान कर इसका उपचार किया जाए तो इसे इसके चरम पर पहुँचने से रोका जा सकता है। साथ ही समय पर उपचार से आँख की रौशनी भी कम होने से बच जाती है।
भैंगेपन के उपचार और इसकी रोकथाम के लिए डॉक्टर कॉन्टेक्ट लेंस और चश्मे लगाने की सलाह देते हैं। वहीँ कुछ मामलों में डॉक्टर सर्जरी कराने की सलाह भी देते हैं।