Low Blood Pressure | लो ब्लड प्रैशर क्या है?

हमारे शरीर में ब्लड फ्लो (रक्त का बहाव) नियमित चलता रहता है और यह कभी नहीं  रुकता। यह ब्लड फ्लो हमारे ह्रदय के द्वारा बनाया जाता है। हमारा हृदय ही पूरे शरीर को  पम्पिंग के द्वारा रक्त भेजता है और इसके लिए वह पंप की तरह रक्त को भरता है और  फिर धमनियों (आर्टरीज) में धकेल देता है। धमनियों से यह रक्त कैपिलरीज में पहुंचता है  और फिर सबसे पतली रक्त वाहिकाओं में जाता है।

रक्त को जिस वक्त हृदय द्वारा सबसे बड़ी रक्त वाहिकाओं यानी धमनियों में धकेला जाता है, उसका दबाव  बहुत ज्यादा होता है और जब वह कैपिलरीज में पहुंचता है तो उसका दबाव पहले के मुकाबले थोड़ा और कम  हो जाता है। इसी तरह शरीर की छोटी-छोटी रक्त वाहिकाओं तक पहुंचते-पहुँचते रक्त का दबाव कम होता चला  जाता है। लेकिन इसका दबाव इतना होता ही है कि यह पूरे शरीर की सभी रक्त वाहिकाओं तक पहुँच जाये।  यदि हृदय द्वारा धमनियों में रक्त पूरे दबाव के साथ न फेंका जाये तो यह धमनियों फिर कैपिलरीज और  फिर रक्त वाहिकाओं में भी पूरी तरह से नहीं पहुँच पाता। इससे शरीर के सभी अंगों तक रक्त नहीं पहुंच पाता  और शरीर में रक्त का दबाव कम हो जाता है। इसे ही लो ब्लड प्रेशर कहा जाता है।

ब्लड प्रैशर दो तरह का होता है-

सिस्टोलिक प्रैशर – जब हृदय रक्त को भरता है और उसे धमनियों में पंप करता है तो उस दौरान, धमनियों  पर जो दबाव बनता है उसे सिस्टोलिक प्रेशर कहा जाता है।

डायास्टोलिक प्रैशर- जब हृदय पंप करने के बाद सहज अवस्था में आ जाता है, उस दौरान धमनियो पर जो  दबाव होता है उसे डायास्टोलिक कहा जाता है।

सिस्टोलिक और डायास्टोलिक की सबसे कम रेंज 90/60 होती है। यदि सिस्टोलिक प्रैशर 90 से कम और  डायस्टोलिक प्रैशर 60 से कम हो तो इस स्थिति को हाइपोटेंशन (लो ब्लड प्रैशर) कहा जाता है।
थोड़ा बहुत ब्लड प्रैशर कम या ज्यादा होता ही रहता है। यहाँ तक कि पूरे दिन में हर किसी व्यक्ति का ब्लड  प्रैशर एक जैसा नहीं रहता। यह ऊपर-नीचे होता रहता है। लेकिन यदि किसी व्यक्ति का ब्लड प्रैशर नियमित  तौर पर कम हो रहा हो, और इसके लक्षण, जैसे सीने में दर्द, बहुत ज्यादा थकावट, सिर चकराना तो इसे  नियंत्रित करना आवश्यक होता है। नहीं तो यह व्यक्ति को हृदय रोगी बना सकता है।

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