Problems with color Blindness

रंग अंधता यानी कलर ब्लाइंडनैस एक ऐसी समस्या है, जो व्यक्ति की रंगों को देख पाने और पहचानने की  क्षमता को छीन लेती है। जहाँ कुछ मामलों में, कोई व्यक्ति रक्त अंधता में रंगों की पहचान तो कर लेता है,  लेकिन उसके शेड्स की पहचान नहीं कर पाता। वहीँ कुछ मामलों में ऐसा भी देखने को मिलता है कि व्यक्ति  की आँखों की वह कोशिकाएं जिनकी मदद से रंगों की पहचान की जाती है, वह बिलकुल भी कार्य नहीं कर  पाती और इस स्थिति में, व्यक्ति रंगों की पहचान तो दूर बल्कि उन्हें देख भी नहीं पाता।

रंग अंधता बिमारी नहीं, बल्कि एक डिसऑर्डर यानी विकार होता है, जो अधिकतर मामलों में जन्मजात होता  है और माता या पिता से बच्चे में आता है। वहीँ बेहद कम मामले ऐसे भी होते हैं, जिनमें किसी दुर्घटना के  कारण व्यक्ति की आँखों की वह कोशिकाएं नष्ट हो सकती हैं, जो रंगों की पहचान के लिए व्यक्ति की मदद  करती हैं।

यदि इस समस्या के आम जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की बात की जाए तो आम तौर पर इससे व्यक्ति को  कोई बड़ी परेशानी नहीं होती, लेकिन हाँ उसे असहजता का सामना ज़रूर करना पड़ता है। क्या हो सकती हैं  वह परेशानियां या असहजताएं जिन्हें कलर ब्लाइंड व्यक्ति को झेलना पड़ता है

रंग अंधता का जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव-

  1. रंग अंधता से पीड़ित व्यक्ति को पढ़ाई के दौरान, मुश्किल का सामना करना पड़ता है। वह स्कूल और  कॉलेज में पढ़ाई में जहाँ भी रंगों की आवश्यक्ता जैसे चार्ट बनाना, कोई कलाकृति बनाना, या ग्राफ़ बनाने  की आवश्यकता पड़ती है, वहां उसे परेशानी होती है।
  2. रंग अंधता से पीड़ित व्यक्ति को कपड़ों के रंग पहचानने में मुश्किल होती है।
  3. इस तरह के व्यक्तियों को सड़क पार करते समय लाल-हरी और पीली बत्ती की पहचान करने में परेशानी  होती है।
  4. कलर ब्लाइंड व्यक्ति फलों और सब्जियों का रंग न देख पाने के कारण उनके ताजे और बासी या यह  कौन सा फल या सब्जी है का अंदाजा भी नहीं लगा पाता। यदि सब्जी या फल की बनावट एक जैसी हो  तो।
  5. जब हम कोई रंग बिरंगी डिश जैसे बिरयानी देखते हैं, जिसमें टमाटर कर हरा धनिया भी डला हो, तो  हमारी भूख में इजाफा हो जाता है, लेकिन ऐसे व्यक्ति या बच्चे जो इनके रंगों को देख ही नहीं पाते, उन्हें  खाने की लालसा आम व्यक्तियों की तरह नहीं जगती। यह बात खास तौर पर बच्चों पर लागू होती है।

  • इस समस्या से पीड़ित बच्चों के साथ एक परेशानी यह भी होती है कि इस समस्या का पता  माता-पिता को काफी समय तक नहीं चल पाता। मतलब बच्चा पाँच-छः साल का हो जाए तो भी  इसकी जानकारी माता-पिता को हो जाए ऐसा आवश्यक नहीं है। वहीं जब यह बच्चे स्कूल जाते हैं  और पढ़ना शुरू करते हैं तो इनके अध्यापकों को भी इसकी जानकारी नहीं होती, ऐसे में  अध्यापकों को बच्चों को पढ़ाने में और बच्चों को रंगों को न समझ पाने के कारण मुश्किलों का  सामना करना पड़ता है।

  • जिन माता-पिताओं को रंग अंधता की समस्या हो उन्हें अपने बच्चों का खास ध्यान रखना  चाहिए और बच्चे के बड़े होने के साथ-साथ उसकी रंग अंधता की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए।  इससे बच्चा लम्बे समय तक रंग अंधता के कारण होने वाली अतिरिक्त परेशानियों से बच  सकता है। मसलन यदि बच्चे के स्कूल में पता है कि वह कलर ब्लाइंड है, तो वह उसकी परेशानी  को समझ कर उसके लिए उपयुक्त हल खोज सकते हैं। 

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