Treatment for lazy eye

  • भैंगापन जिसे लेज़ी आई या चिकित्सकीय भाषा में स्ट्राबिस्मस के नाम से भी जाना जाता  है, एक ऐसी समस्या है, जिसमें आँखों की मांशपेशियां या किसी एक आँख की मांशपेशी  सामान्य तौर पर काम नहीं कर पाती और इस वजह से आँख की पुतली मस्तिष्क के नियंत्रण  में नहीं रहती। यानी वह इधर-उधर घूमती रहती है।
  •  यह समस्या जन्मजात होती है और बच्चे के बढ़ने के साथ-साथ यह साफ तौर पर नज़र आने  लगती है। जहाँ एक और इसका इलाज मुश्किल या न के बराबर ही माना जाता है, कुछ डॉक्टर  का यह भी मानना है कि समय रहते उचित रोकथाम और उपचार के जरिये भैंगेपन को ठीक  किया जा सकता है।
  • यदि बच्चों में भैंगेपन की पहचान की बात की जाए, तो जन्म के बाद शिशु जब एक से दो  महीने का होता है, माता-पिता को आभास होने लगता है कि बच्चे की आँख में कोई  समस्या है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है, उसकी आँख का भैंगापन साफ़ नज़र आने  लगता।  इस स्थिति में, माता-पिता को जितनी जल्दी पता चलता है कि बच्चे की आँख में  समस्या है उनका डॉक्टर के पास जाना आवश्यक होता है। सिर्फ भैंगेपन के इलाज के लिए  नहीं, बल्कि बच्चे की नज़रें कमज़ोर होने से बचाने के लिए भी।
  •  शुरुआती तौर पर जब माता-पिता डॉक्टर के पास बच्चे को आँख की समस्या के लिए लेकर  जाते हैं, डॉक्टर चश्मा लगाने और आंख पर पैच लगा कर रखने की सलाह देते हैं। यह  पट्टी स्वस्थ आँख पर बाँधी जाती है। ताकि लेज़ी आई या भैंगेपन से ग्रस्त आँख की  मांशपेशियों का व्यायाम हो सके। 
  • माना जाता है कि भैंगेपन के उपचार की शुरुआत जितनी जल्दी हो जाती है,  इसके ठीक होने की उम्मीद उतनी ही ज्यादा बढ़ जाती है। डॉक्टर भैंगेपन के  इलाज में, दोनों आँखों की पुतलियों को एक सीध में लाने और आँखों की दृष्टि  को बनाए रखने की कोशिश करते हैं।
  • इस उपचार के अलावा, यदि डॉक्टर को आवश्यकता महसूस होती है, तो वह  सर्जरी कराने की सलाह भी देते हैं। आजकल भैंगेपन के लिए कांटेक्ट लेंस और  करेक्टिंग ड्रूपी आईलिड्स भी चिकित्सा जगत में उपलब्ध है। करेक्टिंग ड्रूपी  आईलिड्स (Correcting droopy eyelids) एक ऐसी सर्जरी होती है, जिसमें आँख  की दृष्टि में बाधा बनने वाली पालक को ऊपर उठा दिया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *